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Friday, October 17, 2025

इस वर्ष का अद्भुत संयोग

इस वर्ष का अद्भुत संयोग देखिए, विजयदशमी और गांधी जयंती एक ही दिन पड़ी थी। मेरी गांधी जी से कोई शिकायत नहीं है, मेरी शिकायत है उन भोले-भाले हिंदुओं से जिन्होंने राम और कृष्ण को छोड़कर 1947 में एक नया पिता जी ढूंढ़ लिया और तब से वही उनके आदर्श बन गए। इस देश में भगवान राम की आलोचना हो सकती है, भगवान कृष्ण की आलोचना हो सकती है, लेकिन गांधी पर प्रश्न उठाना पाप समझा जाता है। जैसे ही गांधी के बारे में कुछ बोलो, पूरा देश अपॉलोजिस्टिक हो जाता है।
गांधी का चेहरा जैसा हमें दिखाया गया, उसके पीछे की सच्चाई बेहद कटु और कड़वी है। दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने अपनी पत्नी कस्तूरबा से ईसाइयों के शौचालय की गंदगी साफ करवानी चाही। जब कस्तूरबा ने मना किया तो गांधी ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें घर से बाहर खड़ा कर दिया और कहा—चुड़ैल, तू घर में नहीं घुस सकती। जो आदमी अपनी पत्नी की असहमति नहीं झेल पाया, वही हमें अहिंसा और त्याग का पाठ पढ़ा रहा था। जो लोकतांत्रिक ढंग से भारी बहुमत से चुने गये काँग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस को सहन नहीं कर पाया, वही हमारे राष्ट्र का पिता है?

गांधी की वजह से ही खिलाफत आंदोलन खड़ा हुआ। तुर्की के खलीफा को बचाने के लिए गांधी ने भारत के हिंदुओं को मुसलमानों के पीछे खड़ा कर दिया। इसका नतीजा निकला मालाबार का मोपला विद्रोह—हज़ारों हिंदुओं का कत्लेआम हुआ, औरतों की अस्मिता लूटी गई, जबरन धर्मांतरण हुआ। लेकिन गांधी का आंदोलन चलता रहा, जैसे हिंदुओं की जान की कोई कीमत ही न हो।
फिर आया डायरेक्ट एक्शन डे। जिन्ना के आदेश पर कलकत्ता की गलियों में हिंदुओं को दिनदहाड़े काटा गया। दो दिनों में ही 10000 से ज्यादा हिंदुओं का कत्लेआम हुआ, लाशें सड़कों पर बिछीं रहीं, हजारों हिन्दू महिलाओं की अस्मत लूटी गयी। लेकिन जब तक हिंदू मरते रहे, गांधी मौन बैठे रहे। लेकिन जैसे ही हिंदुओं ने गोपाल पाठा की अगुवाई में पलटवार किया और अपनी रक्षा के लिए तलवार उठाई, गांधी वहाँ पहुँच गया और धरना देकर हिंदुओं को रोकने लगा। तो क्या अहिंसा का ठेका केवल हिंदुओं के लिए था और मुसलमानों को खुला लाइसेंस था कि जितना चाहे हिंदुओं को काटते रहें?

नोआखली का नरसंहार भी इसी पाखंड का उदाहरण है। हिंदू गांव जलाए गए, बेटियों की इज़्ज़त लूटी गई, हजारों हिंदू उजाड़ दिए गए। गांधी वहाँ पहुँचे तो हिंदुओं का दुख बाँटने के बजाय मुसलमानों को मनाने और समझाने में लगे रहे। हिंदुओं के लिए एक शब्द तक नहीं बोले। और कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष एनी बेसेंट ने तब गांधी को लताड़ लगाते हुए कहा था—गांधी ने खिलाफत आंदोलन चलाकर भारत को पचास साल पीछे धकेल दिया, उन्होंने हिंदुओं को बलिदान की आग में झोंक दिया और मुसलमानों को तुष्टिकरण का नशा पिला दिया। लेकिन फिर भी गांधी का महात्म्य चलता रहा।

स्वामी श्रद्धानंद की हत्या अब्दुल रशीद ने की क्योंकि वे मुसलमान बने हिंदुओं को वापस सनातन में ला रहे थे। लेकिन गांधी ने कहा—हमें अब्दुल रशीद को माफ कर देना चाहिए। यानी एक धर्मयोद्धा की गर्दन कटे तो भी गांधी मौन, बल्कि हत्यारे के पक्ष में खड़े। यही थे उनके दोहरे मापदंड।

और फिर आया बंटवारे का दौर। गांधी कहते थे भारत का बंटवारा मेरी लाश पर होगा, लेकिन बंटवारा हुआ और उनकी लाश कहीं नहीं दिखी। बल्कि वे तब भी मुसलमानों को रोकने में लगे रहे कि पाकिस्तान मत जाओ, यहीं रहो। नतीजा—पंजाब और बंगाल में खून की नदियाँ बह गईं। 21 लाख हिंदू और सिखों का कत्लेआम हुआ। लेकिन गांधी की अहिंसा का ढोंग जारी रहा। जीवित रहते इस ढोंगी ने लाखों हिन्दुओं का कत्ल करवाया ही, मरने के बाद भी इस "कथित अहिंसा के पुजारी" के अनुयायियों ने महाराष्ट्र में 8000 से ज्यादा ब्राह्मणों की हत्या की। 

इतिहास हिंसा से भरा पड़ा है। हिंसा हमेशा तलवार से नहीं होती, निर्णयों और शब्दों से भी होती है। गांधी के निर्णयों ने हिंदुओं को हर बार बलिदान के कटघरे में खड़ा किया।

आज तक कोई यह नहीं बता सका कि किसने गांधी को महात्मा कहा, किसने उन्हें राष्ट्रपिता घोषित किया। यह उपाधि नेताओं ने अपने फायदे के लिए गढ़ी ताकि नकली गांधीवाद चलता रहे और सत्ता उनके हाथों में बनी रहे।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि खिलाफत से लेकर मोपला, डायरेक्ट एक्शन डे से लेकर नोआखली और बंटवारे तक, जब-जब हिंदुओं की लाशें गिरीं, तब-तब गांधी मौन क्यों रहे? मुसलमानों को मनाने के लिए हर बार गांधी क्यों खड़े हो जाते थे? और 21 लाख निर्दोष हिंदुओं की हत्या की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा?

गांधी की झूठी महात्मा वाली छवि ही इस राष्ट्र के सबसे बड़े छल की जड़ है। और विजयदशमी का यह दिन हमें याद दिलाता है कि अधर्म के खिलाफ बोलना ही सच्चा धर्म है ।

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