COASTAL NEWS ODIA 1243
न्यू दिल्ली - (CNO) क्या छिनेगी महुआ मोइत्रा की सांसदी? क्या है 18 साल पुराना 11 सांसदों का वो केस
क्या छिनेगी महुआ मोइत्रा की सांसदी? क्या है 18 साल पुराना 11 सांसदों का वो केस
18 साल पहले, डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ठीक ऐसा ही मामला सामने आया था. तब 11 सांसद निलंबित हो गए थे.
निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा के खिलाफ लोकपाल में भी शिकायत की है.
तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ सवाल के बदले रिश्वत लेने का मामला गरमा गया है. एक तरफ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने BJP सांसद निशिकांत दुबे की शिकायत को आचार समिति के पास भेज दिया है. तो वहीं, दुबे ने लोकपाल में भी शिकायत की है. उधर, महुआ की पार्टी TMC ने इस पूरे घटनाक्रम से खुद को अलग कर लिया है.
लोकसभा अध्यक्ष को लिखी चिट्ठी में निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा पर पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगाया है और 2005 के वाकये का जिक्र किया था. क्या है 18 साल पुरानी वो घटना? क्या उसी तर्ज पर महुआ मोइत्रा की सांसदी छिन सकती है? आइये समझते हैं…
क्या है 2005 की वो घटना?
साल 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई में केंद्र में यूपीए की सरकार बनने के ठीक सालभर बाद एक स्टिंग सामने आया और तहलका मच गया. कोबरा पोस्ट नाम के डिजिटल पोर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन किया, जिसका टाइटल था ‘ऑपरेशन दुर्योधन’. इस स्टिंग ऑपरेशन में कुछ सांसद एक कंपनी को प्रमोट करने और पैसे के बदले संसद में सवाल पूछने को तैयार होते दिख रहे थे.
पोर्टल ने दावा किया उसने 8 महीने तक स्टिंग के बाद 56 वीडियो और 70 ऑडियो टेप जुटाए थे. इस स्टिंग ऑपरेशन में जिन सांसदों का नाम आया था, उसमें 6 सांसद बीजेपी के थे. जबकि एक सांसद (मनोज कुमार) आरजेडी के और एक कांग्रेस के थे. 12 जनवरी 2005 को एक न्यूज चैनल ने इस स्टिंग ऑपरेशन को ऑन एयर चला दिया.
आनन-फानन में बनी संसदीय समिति
उसी दिन आनन-फानन में लोकसभा अध्यक्ष ने पूरे मामले की जांच के लिए एक संसदीय समिति गठित कर दी. कांग्रेस नेता पवन बंसल इस कमेटी के अध्यक्ष थे. जबकि भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा, सीपीएम के मोहम्मद सलीम, समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव और कांग्रेस के सी. कुप्पूस्वामी (C Kuppusamy) सदस्य के तौर पर शामिल किए गए थे.
और चली गई 11 सांसदों की सदस्यता
इस समिति की जांच के आधार पर तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद में एक प्रस्ताव पेश किया. जिसमें कहा गया कि इन सांसदों का व्यवहार अनैतिक था और उनकी सदस्यता खत्म की जानी चाहिए. यह प्रस्ताव पारित भी हो गया. 11 सदस्यों की सांसदी छीन ली गई थी. हालांकि बीजेपी की तरफ से तीखा विरोध देखा गया. बीजेपी सांसद वॉक आउट कर गए. तब लाल कृष्ण आडवाणी ने इस फैसले को ‘कैपिटल पनिशमेंट’ करार दिया था. बाद में मामला कोर्ट की दहलीज तक भी गया.